Stock Market: भारत के शेयर बाजार में FPI की बिकवाली जारी, विदेशी निवेशकों की चिंता गहराई

FPI
Stock Market: 2025 के नए साल की शुरुआत होते ही भारत के शेयर बाजार में एक बार फिर से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की बिकवाली का सिलसिला जारी है। यह बिकवाली केवल जनवरी के पहले कुछ दिन ही नहीं, बल्कि अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के महीनों में भी लगातार जारी रही थी। जनवरी के पहले छह कारोबारी सत्रों में एफपीआई ने लगभग 11,500 करोड़ रुपये (1.33 अरब डॉलर) के शेयर बेच डाले हैं।
भारत की आर्थिक सुस्ती का असर
एफपीआई की इस बिकवाली के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं, जिनमें सबसे प्रमुख कारण है भारत की आर्थिक सुस्ती। आर्थिक मंदी के कारण, निवेशकों को भारतीय बाजार में आगे कुछ खास उम्मीदें नहीं दिख रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर में कमी आ सकती है, जो निवेशकों के लिए चिंता का कारण है। इसके अलावा, दिसंबर तिमाही में कंपनियों के मुनाफे में कमी आने की उम्मीदें भी एफपीआई के बिकवाली के पीछे एक प्रमुख कारण हैं।
अमेरिकी नीतियों और वायरस का असर
इसके अलावा, अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव और ट्रंप की नीतियों को लेकर भी अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। ट्रंप के शासन में अमेरिकी टैरिफ नीतियां भी बदल सकती हैं, जिससे वैश्विक व्यापार पर असर पड़ सकता है। इसके साथ ही, चीन में एचएमपीवी (Human Metapneumovirus) वायरस के बढ़ते मामलों ने भी निवेशकों के मन में एक डर पैदा कर दिया है। इस वायरस का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, जो एफपीआई को और सतर्क बना रहा है।
एफपीआई की “सेल ऑन राइज” रणनीति
जनवरी की शुरुआत में बाजार में हल्का सुधार दिखा, लेकिन एफपीआई ने इस मौके का फायदा उठाते हुए अपनी बिकवाली तेज कर दी। एक्सपर्ट्स का मानना है कि एफपीआई की यह रणनीति “सेल ऑन राइज” (उठने पर बिकवाली) की रही है। इसका मतलब यह है कि जब बाजार में थोड़ी सी बढ़त दिखाई देती है, तो एफपीआई अपने शेयर बेचने का मौका नहीं छोड़ते। इस रणनीति के तहत, एफपीआई ने जनवरी के पहले दिनों में बाजार की हल्की बढ़त का फायदा उठाया और अपनी बिकवाली को और तेज कर दिया।
घरेलू निवेशकों का उत्साह
जब विदेशी निवेशक बाजार से पैसे निकाल रहे थे, वहीं घरेलू निवेशकों ने इसका उलट रुख अपनाया। घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) ने इस दौरान 12,600 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया, जबकि खुदरा निवेशकों ने 2,770 करोड़ रुपये का और निवेश किया। यह संकेत देता है कि भारतीय घरेलू निवेशकों का विश्वास भारतीय शेयर बाजार में बना हुआ है, जबकि विदेशी निवेशकों के मन में अनिश्चितता और चिंता है।
एफपीआई की रणनीति पर विश्लेषण
एक्सिस सिक्योरिटीज के राजेश पलविया का मानना है कि एफपीआई का ध्यान मुख्य रूप से कंपनियों के मुनाफे पर है। जब तक कंपनियों के प्रदर्शन और भारत की अर्थव्यवस्था पर कुछ स्पष्ट तस्वीर नहीं बनती, तब तक एफपीआई की नकारात्मक रुख में बदलाव की संभावना कम है। इसके अलावा, चीन में एचएमपीवी वायरस के बढ़ते मामलों और अमेरिकी नीति के बारे में अनिश्चितता ने भी एफपीआई को सतर्क बना दिया है।
भारत की जीडीपी वृद्धि दर
भारत सरकार ने इस साल के लिए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 6.4% रखा है, जो पिछले चार वर्षों में सबसे धीमी वृद्धि होगी। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), वर्ल्ड बैंक और गोल्डमैन सैक्स जैसी वैश्विक संस्थाएं भी भारत की विकास दर को लेकर अलग-अलग अनुमान लगा रही हैं। IMF का कहना है कि भारत की विकास दर 6.5% रहेगी, जबकि वर्ल्ड बैंक ने इसे 6.7% और गोल्डमैन सैक्स ने इसे 6% के करीब रहने का अनुमान जताया है।
कंपनियों के मुनाफे में मंदी
नुवामा रिसर्च की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, तीसरी तिमाही (Q3FY25) में कंपनियों के मुनाफे की वृद्धि धीमी रहने की संभावना है। इस तिमाही में टॉप-लाइन (कंपनियों की कुल आय) में केवल 8% सालाना वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही, मुनाफे में भी 10% से कम की वृद्धि का अनुमान है, जिससे बाजार में गिरावट का जोखिम बढ़ सकता है। बाजार में इस समय उच्च मूल्यांकन और कम हो रही तरलता (Liquidity) भी निवेशकों को सतर्क कर रही है।
भारतीय बजट और मौद्रिक नीति का महत्व
एफपीआई के लिए आगामी भारतीय बजट और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का फरवरी 2025 में आने वाला मौद्रिक नीति निर्णय महत्वपूर्ण होंगे। भारतीय बजट में सरकार के खर्च और उपभोक्ता खर्च को बढ़ाने के कदमों का ऐलान हो सकता है, जो एफपीआई के निवेश निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा, RBI की मौद्रिक नीति भी ब्याज दरों के फैसलों के बारे में दिशा तय करेगी, जो एफपीआई के निवेश रुख को प्रभावित कर सकती है।
वैश्विक बाजार में अनिश्चितता
वैश्विक स्तर पर भी आर्थिक अनिश्चितता बनी हुई है। अमेरिका में महंगाई बढ़ने के कारण, केंद्रीय बैंक की नीतियों में बदलाव हो सकता है, जो वैश्विक बाजारों पर असर डाल सकते हैं। अमेरिकी शेयर बाजार में भी उतार-चढ़ाव बना हुआ है, और बॉन्ड बाजार में गिरावट जारी है, जिससे निवेशकों को चिंता हो रही है कि क्या ब्याज दरें जल्द कम होंगी या नहीं।
इस प्रकार, भारतीय शेयर बाजार में एफपीआई का बिकवाली का यह सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है, जब तक कि वैश्विक और घरेलू अनिश्चितताओं पर कुछ स्पष्टता नहीं मिलती।