क्या भारत ने गरीबी को हराया? SBI की रिपोर्ट पर उठा बड़ा सवाल

Poverty
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें दावा किया गया कि भारत के ग्रामीण इलाकों में गरीबी दर में भारी गिरावट आई है। इसका कारण बताया गया है – बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर, निचले वर्ग की खपत में बढ़ोतरी और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT)। SBI का कहना है कि 2024 के अंत तक, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी दर 7.2% से घटकर 4.86% हो गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में भी ये 4.6% से घटकर 4.09% हो गई।
इसके पीछे रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि गरीबी रेखा को इस साल 1,632 रुपये (ग्रामीण इलाकों के लिए) और 1,944 रुपये (शहरी इलाकों के लिए) निर्धारित किया गया। यह आंकड़ा 2011 में तेंडुलकर कमेटी द्वारा तय गरीबी रेखा को महंगाई के हिसाब से अपडेट करके निकाला गया।
लेकिन, कुछ अर्थशास्त्रियों को इन आंकड़ों पर शक है। टाटा इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर आर. रामकुमार का कहना है कि SBI ने जो गरीबी रेखा इस्तेमाल की है, वह पूरी तरह से सही नहीं है। उनका कहना है कि तेंडुलकर गरीबी रेखा असल में “अत्यधिक गरीबी रेखा” है और इसे अपडेट करना जरूरी था।
वहीं, पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रोणब सेन ने भी इस पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि गरीबी रेखा का सही आकलन करने के लिए हमें विकास के मानकों को ध्यान में रखना चाहिए, जो समय के साथ बदलते रहते हैं। सिर्फ पुरानी विधियों को लागू करना ठीक नहीं है।
इस रिपोर्ट में एक और मजेदार बात ये है कि अब खपत के आंकड़ों को एक नए तरीके से इकट्ठा किया जा रहा है, जिससे आंकड़े थोड़ा अलग नजर आते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि अब ग्रामीण और शहरी इलाकों के डेटा इकट्ठा करने का तरीका बदल चुका है, जिससे अमीर वर्ग को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिल रहा है, और इसके चलते गरीबों की वास्तविक स्थिति का सही अंदाजा नहीं मिल रहा।
आखिरकार, सवाल यही उठता है – क्या सच में गरीबी कम हुई है, या फिर आंकड़ों के खेल ने इसे कम दिखा दिया? जो भी हो, गरीबी का वास्तविक आंकलन और श्रम बाजार की स्थिति पर गहरी नजर रखना जरूरी है।