Rupee Fall: अरविंद सुब्रमण्यम ने बताया: भारतीय रुपया गिरने से बच नहीं सकता, RBI गवर्नर के लिए बड़ी चुनौती

Rupee
Rupee Fall: पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अरविंद सुब्रमण्यम ने भारत के मौजूदा करेंसी संकट को नए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) गवर्नर संजय मल्होत्रा के लिए एक कठिन चुनौती बताया है।
एक पोस्ट में सुब्रमण्यम ने आठ महत्वपूर्ण कारणों को बताया कि क्यों रुपया गिरना तय है और केंद्रीय बैंक के सामने क्या कड़े फैसले हैं।
क्या कहा सुब्रमण्यम ने? सुब्रमण्यम ने मल्होत्रा को एक “शिकार” बताया, जो अपनी पूर्ववर्ती शक्तिकांत दास से मिले अव्यवस्थित नीतिगत ढांचे और फिक्स्ड एक्सचेंज रेट सिस्टम से जूझ रहे हैं। दास के कार्यकाल में रुपये की अस्थिरता कम थी और 700 अरब डॉलर से ज्यादा के विदेशी मुद्रा भंडार का समर्थन था। लेकिन सुब्रमण्यम का कहना है कि अब यह नीति अपनी सीमा तक पहुंच चुकी है।
उन्होंने यह भी कहा कि RBI के आंकड़े बताते हैं कि रुपया ओवरवैल्यूड (अत्यधिक मूल्यांकित) है और यह गिरना तय है, खासकर अगर अमेरिका आयात शुल्क (टैरिफ) लगाता है।
RBI के सामने दो विकल्प सुब्रमण्यम के अनुसार, RBI के पास दो ही रास्ते हैं: या तो रुपया धीरे-धीरे गिरने दे, या एक बड़े और अचानक गिरावट को स्वीकार कर ले। दोनों विकल्प मुश्किल हैं। धीरे-धीरे गिरावट से अटकलों का दबाव बढ़ सकता है, जबकि अचानक गिरावट से कंपनियों और अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा।
हाल ही में रुपया डॉलर के मुकाबले 86.7025 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिरा है, जो विदेशी पूंजी के बाहर जाने, तेल की कीमतों में वृद्धि और डॉलर की मजबूती के कारण हुआ।
नया RBI गवर्नर क्या करेंगे? संजय मल्होत्रा, जिन्होंने दिसंबर में कार्यभार संभाला, अब रुपया के दैनिक उतार-चढ़ाव में अधिक लचीलापन देने की योजना बना रहे हैं, जिससे पुराने कठोर नियंत्रणों को तोड़ा जाएगा। हालांकि, सुब्रमण्यम ने चेतावनी दी है कि इससे काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।
रुपया की कमजोरी पर भारतीय निर्यातकों की प्रतिक्रिया निर्यातक लंबे समय से कमजोर रुपये की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी प्रतिस्पर्धा बढ़ सके, लेकिन RBI सतर्क है। भारत 90% कच्चे तेल का आयात करता है, और कमजोर रुपया सीधे आयात बिल को प्रभावित करता है। सुब्रमण्यम का कहना है कि इन विरोधाभासी दबावों को संभालना RBI के लिए एक कठिन चुनौती होगा।
निष्कर्ष रुपये की गिरावट और इस पर काबू पाने के प्रयास भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं। संजय मल्होत्रा के लिए यह असमंजसपूर्ण स्थिति हल करना आसान नहीं होगा।